Thursday 15 August 2019

मेरे अजीज दोस्त

मेरे अजीज दोस्त


हसते थे, हसाते थे,
समझते थे, समझाते थे,
थोडी मेरी सुनते, थोडी अपनी बताते थे,
कुछ ऐसे अजीज दोस्त मेरे थे।

जब किसी रोज पलके बिछायें मैं बैठ जाया करती थी,
उदास दिल में गम छुपाये रखती थी,
वो हसी और ठिठोली से मुझे गुदगुदाया करते थे,
कुछ ऐसे अजीज दोस्त मेरे थे।

था मुझे शौक अपने विचारों को उनके समक्ष रखने का,
हर गलत बात टोकने का, उन्हे निखारने का,
वो सब मुझे मिलकर दार्शनिक बुलाते थे,
कुछ ऐसे अजीज दोस्त मेरे थे।

पाते थे जब कभी मुझको अकेला सा,
कभी सवेरा तो कभी सहारा बन जाया करते थे,
मेरे अंधेरों में वो उजालों सी किरण बन जाया करते थे,
कुछ ऐसे अजीज दोस्त मेरे थे।

वो दोस्त मेरे बहुत खूब थे,
मौज-मस्ती से भरपूर थे,
वो रौनक का बाजार लिये थे,
कुछ ऐसे अजीज दोस्त मेरे थे।

                                                "मीठी"

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