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Saturday 3 August 2019

प्रेम बंधन- किस्सा प्यार का

क्या हुआ, आज अगर हम साथ नहीं,
तेरे हाथों में मेरा हाथ नहीं।
फांसले कितने भी हैं हम दोनों के दरमियाँ,
फरक नहीं पडंता, मेरा रिश्ता तुझसे रूह का है,
ये किस्सा जिस्म का नहीं।


क्या हुआ, आज अगर हम साथ नहीं,
तेरे हाथों में मेरा हाथ नहीं।
रोज सवेरे सूरज की किरणों की भांति,
तेरी यादें दिल के आँगन पर दस्तक देती हैं,
मेरी उदास आँखों में चमक,
और होठों पर तबस्सुम रख देती हैं।


जिसमें तेरा जिक्र ना हो,
मेरे पास ऐसी कोई बात नहीं,
क्या हुआ, आज अगर हम साथ नहीं,
तेरे हाथों में मेरा हाथ नहीं।


मिलना और फिर बिछड़ना,
है दस्तूर मौहब्बत का,
प्यार तो एक खूबसूरत रिश्ता है, दिल का,
सांझ ढ़लते ही मेरा यू तुझे शब्दों में पिरोना,
तुझे सोचना, तुझे लिखना,
तू मेरे ख्वाबों ख्यालों में, ना आये,
जाती ऐसी कोई रात नहीं,
क्या हुआ, आज अगर हम साथ नहीं,
तेरे हाथों में मेरा हाथ नहीं।


यूँ तो कुछ अजीबों - गरीब किस्सा रहा हमारा,
प्यार अधूरा होकर भी, पूरा रहा हमारा,
कुछ अनकही सी बातों ने सबकुछ बिखेर दिया,
बहुत कुछ उलझा दिया, बस प्यार और सुलगा दिया,
पर प्रेम किसी बंधन का होता मौहताज नहीं,
क्या हुआ, आज अगर हम साथ नहीं,
तेरे हाथों में मेरा हाथ नहीं।


                                                                           "मीठी" 


Saturday 27 July 2019

शब्दों की माला

शब्दों की माला


जी चाहता है  गूँथू एक,
शब्दों की ऐसी माला,
जिसमें उस एक शख्स के,
गुणों का हो धागा,
करूँ मैं माला उसे अर्पण,
जिसने मेरे लिये किया प्रेम समर्पण।
                                                      
अंधकार में, उजालों में,
आँधियों में, तूफानों में,
रहा साथ मेरे वो हरदम,
करूँ ये माला उसे अर्पण।

सलोनी सी सूरत उसकी,
चाँद सी मोहक अदायें है,
छल, कपट से है वो कोसों दूर,
मन उसका है एक दर्पण,
करूँ ये माला उसे अर्पण।

हिम सी शीतलता उसमें,
नीर सी चंचलता है,
फूल सी कोमलता है उसमें,
नादानों सा है भोलापन,
करूँ ये माला उसे अर्पण।

चंदन सी सुगंध है उसमें,
कोयल सी मीठी बोली है,
प्रेम, स्वाभिमानी, धैर्य, उदारता,
की वो है एक मूरत,
करूँ ये माला उसे अर्पण।

है सबसे न्यारा वो,
अपनी ही धुन पर थिरकता है,
जीवन को जीने का उसका अलग तरीका है,
अजीबो-गरीब ही है उसका मेरा बंधन,
करूँ ये माला उसे अर्पण।

अन्त में,
             एक मधुर रिश्ते की इन कडियों से,
             जुडी रहे ये माला,
             जलती रहे मेरे अन्तर्मन में,
             हर पल उसके प्रेम की ज्वाला,
                        एक बार आज फिर तुम्हारा सजदा कर रही हूँ,
                        अपनी इस कविता में तुम्हारी तारीफ लिख रही हूँ,
                        तुम पर है न्यौछावर मेरा तन मन धन,
                        करूँ ये माला उसे अर्पण।

                                                                                                     "मीठी"