शब्दों की माला
जी चाहता है गूँथू एक,
शब्दों की ऐसी माला,
जिसमें उस एक शख्स के,
गुणों का हो धागा,
करूँ मैं माला उसे अर्पण,
जिसने मेरे लिये किया प्रेम समर्पण।
अंधकार में, उजालों में,
आँधियों में, तूफानों में,
रहा साथ मेरे वो हरदम,
करूँ ये माला उसे अर्पण।
सलोनी सी सूरत उसकी,
चाँद सी मोहक अदायें है,
छल, कपट से है वो कोसों दूर,
मन उसका है एक दर्पण,
करूँ ये माला उसे अर्पण।
हिम सी शीतलता उसमें,
नीर सी चंचलता है,
फूल सी कोमलता है उसमें,
नादानों सा है भोलापन,
करूँ ये माला उसे अर्पण।
चंदन सी सुगंध है उसमें,
कोयल सी मीठी बोली है,
प्रेम, स्वाभिमानी, धैर्य, उदारता,
की वो है एक मूरत,
करूँ ये माला उसे अर्पण।
है सबसे न्यारा वो,
अपनी ही धुन पर थिरकता है,
जीवन को जीने का उसका अलग तरीका है,
अजीबो-गरीब ही है उसका मेरा बंधन,
करूँ ये माला उसे अर्पण।
अन्त में,
एक मधुर रिश्ते की इन कडियों से,
जुडी रहे ये माला,
जलती रहे मेरे अन्तर्मन में,
हर पल उसके प्रेम की ज्वाला,
एक बार आज फिर तुम्हारा सजदा कर रही हूँ,
अपनी इस कविता में तुम्हारी तारीफ लिख रही हूँ,
तुम पर है न्यौछावर मेरा तन मन धन,
करूँ ये माला उसे अर्पण।
"मीठी"
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