मैं लिखूँ
लिखूँ अपनी पक्तियों में तुझको,
तेरा सभ्य, विनम्र व्यवहार लिखूँ।
कर्मठ, मृदुभाषी, दयालू, सदाचारी,
तुझमें समाये संस्कार लिखूँ ।
मैं सूरजमुखी के सूरज से,
वह नैन मिलन का सार लिखूँ ।
मेरे नयनों में देखकर, तेरे चंचल नयनों का,
मैं शरमाना हजार बार लिखूँ।
मैं तुझको अपने पास लिखूँ,
या दूरी का अहसास लिखूँ ।
वो पहली-पहली घास लिखूँ,
या निश्छल पडता प्यार लिखूँ।
सावन की रंगीली बहार लिखूँ,
या पतझडं में मौसम का संहार लिखूँ ।
है नीरस तुझ बिन जीवन मेरा,
मैं तेरी आँखों मेंं अपना सारा संसार लिखूँ।
तुझे हकीकत लिखूँ या ख्वाव लिखूँ,
बसुन्धरा-मेघा सा तेरा-अपना साथ लिखूँ।
राधा-कृष्ण के प्यार सा,
मैं वो अधूरा सार लिखूँ।
चुन-चुन कर नये-नये शब्द तेरे लिये,
अपनी हर कविता में तुझको बार-बार लिखूँ।
बहुत मुश्किल है तुझे सिर्फ कविताओं में बयां करना,
तू ही बता मैं कैसे अपना प्यार लिखूँ ।
"मीठी"
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