Monday 29 July 2019

आंशू और मुस्कान

आंशू और मुस्कान



मैं कुछ दिनों से उसमें उसे ढूंढ रही थी,
जब बिखरा हुआ मिला तो उसे समेट रही थी,
अब कुछ समेटा है उसको कुछ बिखरा हुआ सा अब भी है,
जख्म पुराना हो गया पर घाव ताजा अब भी है,


हर चोट पर उसकी मैं मरहम लगाऊंगी,
उदासी भरे उसके जीवन में, मैं खुशियाँ फैलाऊंगी,
टपकने ना दुंगी उसकी आँख से आंशू,
उसके हर एक अस्क को मैं  मुस्कान बनाऊंगी।


                                                                      "मीठी"

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